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ग़ज़ल
ये दुख-दर्द की बरखा बंदे देन है तेरे दाता की
शुक्र-ए-नेमत भी करता जा दामन भी फैलाता जा
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
देने वाला झोलियाँ भर भर देता है तो उस का करम
लेने वाले कब कहते हैं दाता इतना काफ़ी है
असलम अंसारी
ग़ज़ल
का'बा सुनते हैं कि घर है बड़े दाता का 'रियाज़'
ज़िंदगी है तो फ़क़ीरों का भी फेरा होगा
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
नील-गगन पर जिस का सिंघासन वो है जग का पालनहार
पागल ख़ुद को दाता समझे सपनों के संसारों में
इशरत क़ादरी
ग़ज़ल
अपनी आँखों में पड़ी फिरती है अब तक रोज़-ओ-शब
अर्श पर दाता वही सूरत दिखानी आप की
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
नफ़स नफ़स है अता तेरी है करम तेरा
ये दिन भी तेरा ऐ दाता ये रात तेरी है
आज़िम गुरविंदर सिंह कोहली
ग़ज़ल
लुटेरों की बन आए मुझ को शादी मर्ग हो जाए
कहा था किस ने ऐ दाता मिरे दामन को भर इतना