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ग़ज़ल
सरिश्क-ए-सर ब-सहरा दादा नूर-उल-ऐन-ए-दामन है
दिल-ए-बे-दस्त-ओ-पा उफ़्तादा बर-ख़ुरदार-ए-बिस्तर है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तज़्किरे हुस्न के सुन हुस्न का दिल-दादा न बन
बाज़ बातों के तो सुनने में मज़ा होता है
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
इतनी शर्म तो होती थी आँखों में पहले वक़्तों में
गली में सर नीचा रखता जो बाहर दादा होता था
एहतिशाम हसन
ग़ज़ल
फ़िल्मी दुनिया के बारे में सब कुछ मालूम है लेकिन
कौन थे अपने नाना दादा ये मालूम न वो मालूम