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ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
उठा है शोर ख़ुद अपने ही अंदर से मगर अक्सर
दहल के बंद कर लेना पड़ी हैं खिड़कियाँ हम को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
मूँग छाती पे जो दलते हैं किसी की देखना
जूतियों में दाल उन की ऐ 'ज़फ़र' बट जाएगी