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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
निदा आई कि आशोब-ए-क़यामत से ये क्या कम है
गिरफ़्ता चीनियाँ एहराम ओ मक्की ख़ुफ़्ता दर बतहा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच
सुरख़ाब बैठे पानी में हैं मिल के चार पाँच