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ग़ज़ल
अबरू अपनी सलामत रहे ज़र से क्या काम
अश्क-ए-तर से मुझे मतलब है गुहर से क्या काम
मुज़तर मुज़फ़्फ़रपूरी
ग़ज़ल
जानिब-ए-दश्त-ए-गुमाँ देख रहे हो क्या 'राज़'
क्या कभी महर भी जाता है शब-ए-तार के पास
रफ़ीउद्दीन राज़
ग़ज़ल
मु'आफ़ कर मिरी मस्ती ख़ुदा-ए-अज़्ज़ा-व-जल
कि मेरे हाथ में साग़र है मेरे लब पे ग़ज़ल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ब-सू-ए-दश्त-ए-गुमाँ दे रहा है इज़्न-ए-सफ़र
कनार-ए-ख़्वाब सितारा सा झिलमिलाता हुआ
अख़्तर रज़ा सलीमी
ग़ज़ल
कार-गर दस्त-ए-जफ़ा-कार रहेगा कब तक
गर्म ये ज़ुल्म का बाज़ार रहेगा कब तक