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ग़ज़ल
गो दावा-ए-तक़्वा नहीं दरगाह-ए-ख़ुदा में
बुत जिस से हों ख़ुश ऐसा गुनहगार नहीं हूँ
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
तू बचाए लाख दामन मिरा फिर भी है ये दावा
तिरे दिल में मैं ही मैं हूँ कोई दूसरा नहीं है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
दोस्ती का दावा क्या आशिक़ी से क्या मतलब
मैं तिरे फ़क़ीरों में मैं तिरे ग़ुलामों में
शोएब बिन अज़ीज़
ग़ज़ल
तर्क-ए-दुनिया का ये दावा है फ़ुज़ूल ऐ ज़ाहिद
बार-ए-हस्ती तो ज़रा सर से उतारा होता
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
है जिन्हें सब से ज़ियादा दा'वा-ए-हुब्बुल-वतन
आज उन की वज्ह से हुब्ब-ए-वतन रुस्वा तो है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
इश्क़ में हम कोई दावा नहीं करते लेकिन
कम से कम मार्का-ए-जाँ में न हारेंगे तुम्हें
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मसीहाई का दावा और बीमारों से ये ग़फ़लत
दवा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते