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ग़ज़ल
उस को तो पैराहनों से कोई दिलचस्पी न थी
दुख तो ये है रफ़्ता रफ़्ता मैं भी नंगा रह गया
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
वो बुत ऐ 'शाद' जब ग़ज़लों में दिलचस्पी नहीं लेता
मैं उस की शान में कोई भजन कह दूँ तो क्या होगा
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
ख़ुशी की भी ख़बर से अब तो दिलचस्पी नहीं मुझ को
कि अब ऐ ज़िंदगी तुझ से वफ़ा अच्छी नहीं लगती
ज़ोहेब फ़ारूक़ी अफ़रंग
ग़ज़ल
हर मंज़र को मजमा में से यूँ उठ उठ कर देखते हैं
हो सकता है शोहरत पा लें हम अपनी दिलचस्पी से
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
झूट की नमकीनी से बातों में आ जाता है मज़ा
कोई नहीं लेता दिलचस्पी फीकी सी सच्चाई में
ज़फ़र हमीदी
ग़ज़ल
हरम से मुझ को रग़बत है न बुत-ख़ाने से दिलचस्पी
मिरे सज्दों की क़िस्मत में है उन का आस्ताँ शायद
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
वो लोग जिन को है अब ख़ुद-कुशी से दिलचस्पी
कभी बहुत थी उन्हें ज़िंदगी से दिलचस्पी
सय्यद ज़ियाउद्दीन नईम
ग़ज़ल
'नक़ीब' को थी फ़क़त सुर्ख़ियों से दिलचस्पी
जो मुद्द'आ था वो बैनस्सुतूर लिक्खा था
फ़सीहुल्ला नक़ीब
ग़ज़ल
उन को अब मेरी कहानी में ये दिलचस्पी है क्यों
हाँ मुझे इस दौर ने ठुकरा दिया फिर क्या हुआ
महबूब ख़िज़ां
ग़ज़ल
ब-जुज़ मेरे ये दिलचस्पी का सामाँ कौन देखेगा
जला कर दिल के दाग़ों को चराग़ाँ कौन देखेगा