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ग़ज़ल
जनाब-ए-दर्द से पूछो कि लुत्फ़-ए-दिल-लगी क्या है
जो दिल रखते नहीं दिल की लगी का राज़ क्या जानें
जगदीश मेहता दर्द
ग़ज़ल
इक ज़रा सी और फ़ुर्सत ऐ फ़रेब-ए-दर्द-ए-दिल
गुलशन-ए-हस्ती में गुल बन कर महकना है मुझे
जगदीश मेहता दर्द
ग़ज़ल
ज़ामिन नश्व-ओ-नुमा-ए-गुल-ए-तर है ऐ 'दिल'
दर्द-मंदी की ख़लिश सी जो दिल-ए-ख़ार में है
दिल अय्यूबी
ग़ज़ल
मसीहाई तुम्हारी शोहरा-ए-आफ़ाक़ है लेकिन
किसी दर्द-आश्ना दिल को भी तुम ने झाँक कर देखा
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
मेरा ख़ामोश रहना भी हक़ीक़त में फ़ुग़ाँ होगा
फ़साना दर्द-ए-दिल का अश्क बन बन कर अयाँ होगा
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
उस की नज़र तो मिल कर वापस भी हो चुकी है
इक दर्द रह गया है लेकिन दिल-ए-हज़ीं में
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
रह रह के दिल में होती है ऐ 'दर्द' इक ख़लिश
ये और क्या है दर्द-ए-मोहब्बत अगर नहीं
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
उस की हस्ती उस की मस्ती उस का लुत्फ़-ए-इज़्तिराब
जिस के दिल में तेरा दर्द-ए-शौक़ शामिल हो गया
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
ग़म जुदाई का शब-ए-फ़ुर्क़त में दिल पर हमनशीं
दर्द बन कर छाएगा मैं ने कभी सोचा न था
दर्द सिरोंजी
ग़ज़ल
अब तो सोच लिया है यारो दिल का ख़ूँ हो जाने दूँ
जिन लोगों ने दर्द दिया है मैं उन को अफ़्साने दूँ
विश्वनाथ दर्द
ग़ज़ल
दिल का हर दर्द था सर्माया-ए-हस्ती लेकिन
'फ़ैज़' ने अपनी ही उल्फ़त का गला घोंट दिया