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ग़ज़ल
रज़्म-गह में उन से नज़रें लड़ रही हैं बार बार
हो रहा है एक दंगल और उसी दंगल के पास
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
ये मीज़ाइल की दुनिया है न दंगल है न रन कोई
लड़ाई हो तो अब घर से कहाँ रुस्तम निकलता है
अहमद कमाल हशमी
ग़ज़ल
हवा में उड़ के सैर-ए-आलम-ए-ईजाद करते हैं
फ़रिश्ते दंग हैं वो काम आदम-ज़ाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
गुलज़ार में जो दूर गुल-ए-लाला-रंग हो
वो बे-हिजाबियाँ हों कि नर्गिस भी दंग हो