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ग़ज़ल
हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दानिश नक़वी
ग़ज़ल
शो'ला-ए-गुल की बढ़ा देती है लौ-ए-बाद-ए-बहार
तह-ए-शबनम भी दहक उठती है इक चिंगारी
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
दहक उट्ठा बदन उस का हमारे शो'ला-ए-लब से
जला लेकिन बदन अपना भी आतिश-बाज़ियाँ बन कर