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ग़ज़ल
कब बाजेगा गाँव के मरघट के परे मंदिर के संख
कब काला जादू टूटेगा रात ढलेगी कब तक यार
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
संग-ए-मलामत दिल पर मेरे बरसाती है दुनिया 'शातिर'
चोट लगे और हँसता जाऊँ कब तक आख़िर आख़िर कब तक
अक़ील शातिर अंसारी
ग़ज़ल
ज़र्फ़ है किस में कि वो सारा जहाँ ले कर चले
हम तो दुनिया से फ़क़त इक दर्द-ए-जाँ ले कर चले