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ग़ज़ल
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ले के चल पड़ता है मुझ को जो ख़यालात का रथ
जब तिरे शहर में पहुँचे मैं उतर जाता हूँ
अज़्मुल हसनैन अज़्मी
ग़ज़ल
चंदा के उजयारे रथ में जाने पी कब आएँगे
बिर्हा के अँधियारे पथ पर नैन बिछाए बैठे हैं