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ग़ज़ल
बात तो तब है का'बा-ए-दिल का करने लगे तवाफ़
रस्मी उमरे कर के दुनिया-दार बदलते नईं
मुबारक सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
याद दुआओं में रखोगे रस्मन कह तो देते हो
किस ने किस को याद किया है रस्मी याद-दहानी से
सय्यद सरोश आसिफ़
ग़ज़ल
रब्त बढ़ने पर खुला करता है कुछ अच्छा बुरा
इस से क्या होता है गर रस्मी शनासाई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
आज तो हमदम अज़्म है ये कुछ हम भी रस्मी काम करें
किल्क उठा कर यार को अपने नामा-ए-शौक़ अरक़ाम करें
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ग़नीमत है कि इक रस्मी तआ'रुफ़ तो मयस्सर है
नहीं आसाँ किसी मह-वश का मंज़ूर-ए-नज़र होना
नासिर ज़ैदी
ग़ज़ल
ख़्वाब से लगते हैं अब सारे रिश्ते माज़ी के
मिल ही जाते हैं तो रस्मी बातें करते हैं