aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "رند_خانہ_بدوش"
जो बना है आरिफ़-ए-बा-ख़ुदा ये वही 'ज़हीर' है बे-हयावो जो रिंद-ए-ख़ाना-बदोश था तुम्हें याद हो कि न याद हो
हम तो ख़ाना-ब-दोश हैं लोगोहम से मत पूछिए ठिकाने की
वही ख़ाना-ब-दोश उम्मीदेंवही बे-सब्र दिल की ख़ू है अभी
अब कहाँ वो ख़ाना-ब-दोशआसमाँ ब-सर हैं लोग
मैं हूँ ख़ाना-ब-दोश ऐ 'किशवर'ये तआ'रुफ़ है मुख़्तसर मेरा
मैं कि ख़ाना-ब-दोश हूँ मुझ कोहिजरतों का मलाल क्या होगा
पालकी भी मुझे ख़ुदा ने दीतू भी 'ताबाँ' रहा मैं ख़ाना-ब-दोश
फिर रहा हूँ अज़ल से ख़ाना-ब-दोशकिस बगूले की इंतिहा हूँ मैं
इक तअ'ल्लुक़ क़दम को राह से हैमैं न आवारा हूँ न ख़ाना-ब-दोश
फिर रहे हैं वो हो के ख़ाना-ब-दोशवो जो मालिक मकान के निकले
तुम्हें पता नहीं ख़ाना-ब-दोश उम्मीदो?नया इलाक़ा सर-ए-जाँ बसा दिया गया है
कहाँ हैं अब वो मुसाफ़िर-नवाज़ बहुतेरेउठा के ले गए ख़ाना-ब-दोश डेरे तक
ख़ाना-ब-दोश रूह तो खंडर में क़ैद हैटूटे हुए मकान बहुत वक़्त हो गया
नसीब कैसे सँवारेंगे हम से ख़ाना-ब-दोशजिन्हों ने बाल भी अपने कभी सँवारे नहीं
ख़ाना-ब-दोश छोरी तकती है चोरी चोरीउस का तो आइना है कोरे घड़े का पानी
बड़ा गुमान है ख़ाना-ब-दोश लोगों कोमकान वालों का दा'वा है सर-पनाही का
तमाम 'उम्र भटकता रहा मैं ख़ाना-ब-दोशख़रीद भी न सका इक मकान क़िस्तों में
मैं एक ऐसा ही ख़ाना-ब-दोश हूँ 'साक़िब'जो अपने हाथ से अपना मकान खींचता है
इतना ग़ुरूर क़स्र-ए-शही पर न कीजिएयाँ कोई मुस्तक़िल नहीं ख़ाना-ब-दोश है
मुझ को ख़ाना-ब-दोश कर के वोसब के दिल में बसा तो देते हैं
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