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ग़ज़ल
कहाँ सैल-ए-हवादिस में पता हम ख़ाकसारों का
कहीं ठहरी है रू-ए-आब पर ता'मीर मिट्टी की
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए
ऐ हम को समझाने वाले कोई तुझे क्यूँ कर समझाए
नरेश कुमार शाद
ग़ज़ल
कौन हवाओं के पर बाँधे कौन हमारा रस्ता रोके
आग का दरिया होगा तो भी तैर के हम आ जाएँगे
विश्वनाथ दर्द
ग़ज़ल
आब ओ गिया से बे-नियाज़ सर्द जबीन-ए-कोह पर
गर्मी-ए-रू-ए-यार का अक्स भी राएगाँ गया
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
उठी उस रू-ए-रौशन से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
सवा नेज़े पे आया आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता