आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "روئے_درخشاں"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "روئے_درخشاں"
ग़ज़ल
जो तिरे रू-ए-दरख़्शाँ पे नज़र रखते हैं
वो ख़यालों में कहाँ शम्स-ओ-क़मर रखते हैं
सुमन ढींगरा दुग्गल
ग़ज़ल
वो सोए हो के बे-पर्दा यहाँ किस किस तमन्ना से
मगर सदक़े हवा के रात भर रोए दरख़्शाँ पर
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
रखो मत चश्म-ए-ख़्वाब ऐ दोस्तो 'बेदार' से हरगिज़
कोई देती है सोने याद उस रू-ए-दरख़्शाँ की
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
ये रू-ए-दरख़्शाँ ये ज़ुल्फ़ों के साए
ये हंगामा-ए-सुबह-ओ-शाम अल्लाह अल्लाह
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
निगाह-ए-शौक़ में शामिल जो हो ख़ुलूस-ओ-नियाज़
नक़ाब-ए-रो-ए-दरख़्शाँ सरकने लगता है
कृष्ण गोपाल मग़मूम
ग़ज़ल
गुमाँ मेहर-ए-दरख़्शाँ का हुआ है रू-ए-रौशन पर
तअ'ज्जुब एक आलम को है क्या क्या उन के जोबन पर
नवाब शाहजहाँ बेगम शाहजहाँ
ग़ज़ल
इन आँखों से तजल्ली को दरख़्शाँ कौन देखेगा
उठा भी दो नक़ाब-ए-रू-ए-ताबाँ कौन देखेगा
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
जो भर लें एक चुटकी साहब-ए-तासीर मिट्टी की
अभी शर्मिंदा-ए-तासीर हो इक्सीर मिट्टी की