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ग़ज़ल
फ़क़त तसन्नो फ़क़त तकल्लुफ़ तमाम रिश्ते तमाम नाते
तो क्या किसी का ख़याल रखना तो क्या रवाबित बहाल रखना
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
रवाबित भी बराबर काम करते हैं सहारों का
किनारों तक हमें ले जाएगी निस्बत किनारों की
सराहत अहमद सराहत
ग़ज़ल
मुक़द्दर में जो थी ऐ 'जुर्म' क़ैद-ए-ज़ीस्त की सख़्ती
अनासिर के रवाबित बन गए दीवार-ओ-ज़िंदाँ की