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ग़ज़ल
हम न कहेंगे ख़ुद ही बताओ क्या ये अच्छा करते हो
फूल से नाज़ुक जिस्म के अंदर पत्थर सा दिल रखते हो
ताबिश रिहान
ग़ज़ल
जब इन की ज़ुल्फ़ों को सूँघा तो अंदलीब-ए-ख़याल
गुलाब ओ नर्गिस ओ रैहान से निकल आया
सय्यद सलमान गीलानी
ग़ज़ल
प्यार का दुश्मन सारा ज़माना कल भी था और आज भी है
दीवानों का मुश्किल जीना कल भी था और आज भी है
ताबिश रिहान
ग़ज़ल
छोड़ के फ़र्ज़ानों की महफ़िल तन्हा इस दीवाने को
हज़रत-ए-नासेह क्यों आ जाते हैं अक्सर समझाने को
ताबिश रिहान
ग़ज़ल
हर शख़्स है पा-बस्ता-ब-ज़ंजीर लिखे कौन
इस अहद-ए-पुर-आशोब की तफ़्सीर लिखे कौन