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ग़ज़ल
सपनों के रैन-बसेरे में सदियों से बड़ा सन्नाटा है
आँखों में नींद सुलगती है अब ख़्वाब कोई दिखलाओ नहीं
अख़्तर आज़ाद
ग़ज़ल
थोड़ी देर में थक जाएँगे नील-कमल सी रेन के पाँव
थोड़ी देर में थम जाएगा राग नदी के झाँझन का
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
दुनिया तो हक़ीक़त में है इक रैन-बसेरा
हम सब तो हैं कुछ वक़्त के मेहमान ख़ुदा के
दर्शन दयाल परवाज़
ग़ज़ल
नबी सदक़े रयन सारी दो तन जूँ शम्अ जलती थी
जो तारे के नमन रही थी 'क़ुतुब' शह चाँद सूँ मिल में