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ग़ज़ल
महशर आफ़रीदी
ग़ज़ल
मैं उस के साथ हूँ जो उठ के फिर खड़ा हो जाए
मैं तेरे शहर को अब ज़लज़ला नहीं दूँगा
लियाक़त जाफ़री
ग़ज़ल
दौर-ए-मसर्रत 'आरज़ू' अपना कैसा ज़लज़ला-आगीं था
हाथ से मुँह तक आते आते छूट पड़ा पैमाना भी
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
मिरी दास्तान-ए-अलम तो सुन कोई ज़लज़ला नहीं आएगा
मिरा मुद्दआ नहीं आएगा तिरा तज़्किरा नहीं आएगा
बेदिल हैदरी
ग़ज़ल
माना कि ज़लज़ला था यहाँ कम बहुत ही कम
बस्ती में बच गए थे मकाँ कम बहुत ही कम