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ग़ज़ल
मता-ए-कौसर-ओ-ज़मज़म के पैमाने तिरी आँखें
फ़रिश्तों को बना देती हैं दीवाने तिरी आँखें
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ज़माम-ए-कार अगर मज़दूर के हाथों में हो फिर क्या
तरीक़-ए-कोहकन में भी वही हीले हैं परवेज़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जाने किस दिन हाथ से रख दूँगा दुनिया की ज़माम
जाने किस दिन तर्क-ए-दुनिया का ख़याल आ जाएगा
ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल
कोई रखे बे-जहत सफ़र में मसाफ़तों का हिसाब कैसे
कि तौसन-ए-बे-ज़माम को बे-निशान जादा भी कम नहीं है
ख़ालिद इक़बाल यासिर
ग़ज़ल
بن میں کہیں نہ ناقۂ لیلیٰ کو گم کرو
رکھو نگہ کے ہاتھ میں اپنی زمام چشم
शाह ज़ियाउद्दीन अल-हुसैनी प्रवाना बुरहानपुरी
ग़ज़ल
खींचते थे शबाब में अश्हब-ए-वक़्त की ज़माम
शौक़ जवान है मगर दौर-ए-जुनूँ गुज़र गया
सईदुल ज़फर चुग़ताई
ग़ज़ल
कोई सिकंदर कोई क़लंदर कभी न पल भर को रोक पाया
समंद-ए-'उम्र-ए-रवाँ हमेशा से बे-ज़माम-ओ-रिकाब क्यों है