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ग़ज़ल
तुम्हें आराम ज़िंदाँ में दिवानों इस सबब से है
दिया ज़ंजीर नें शायद तुम्हारे पाँव को सहला
फ़त्तावत औरंगाबादी
ग़ज़ल
हम जवानों को न छोड़ा उस से सब पकड़े गए
ये दो-साला दुख़्तर-ए-रज़ किस क़दर शत्ताह है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
हुस्न-ए-ख़ुद-बीं न मिला हुस्न-ए-ख़ुद-आरा न मिला
जब मैं ससुराल गया एक भी साला न मिला
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
क्या तअ'ज्जुब है अगर मुर्दा-ए-सद-साला जिएँ
कम नहीं मेरे मसीहा के भी एजाज़ से रम्ज़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
पैंगाए और ये जौबनों का रहनुमा-ए-दिल
सद साला ज़ाहिदों को तो बरसों झुलाए ज़ुल्फ़
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
है ज़र्रा ज़र्रा पर सदा अहलव-व-सहलन मर्हबा
क्या सर-ज़मीन-ए-दिल पे है वो आज शाम आया हुआ