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ग़ज़ल
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
हाए क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
वस्ल का मौसम हो तो ये सर्दियाँ ही ठीक हैं
हिज्र में क़ुर्बत की ये परछाइयाँ ही ठीक हैं
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
ये दुनिया जा-ए-आसाइश नहीं है आज़माइश है
यहाँ जो सख़्तियाँ तुझ पर पड़ीं अंगेज़ करना है
नादिर काकोरवी
ग़ज़ल
अकेले क्या तुम्हीं ने सख़्तियाँ झेलीं जुदाई की
नहीं हम ने भी पत्थर का कलेजा कर के दिन काटे
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
नातिक़ आज़मी
ग़ज़ल
मैं शुक्र-ए-रब का क़ाइल हूँ हवा कैसी ही चलती हो
पता आसानियों का दे गईं हैं सख़्तियाँ मुझ को
अदील ज़ैदी
ग़ज़ल
देखता रहता है बंदों पर मुसलसल सख़्तियाँ
क्या ख़ुदा इक इस्म-ए-आज़म के सिवा कुछ भी नहीं
चन्द्रभान ख़याल
ग़ज़ल
सख़्तियाँ मेरे लिए आसानियाँ बनती गईं
शहसवार-ए-कर्बला की याद आ जाने के बा'द
रहमत इलाही बर्क़ आज़मी
ग़ज़ल
ख़त्म हम पर हैं शब-ए-ज़िंदाँ की सारी सख़्तियाँ
ज़ेहन ओ दिल आज़ाद होगा वो सहर देखेंगे लोग