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ग़ज़ल
साया-ए-चश्म में हैराँ रुख़-ए-रौशन का जमाल
सुर्ख़ी-ए-लब में परेशाँ तिरी आवाज़ का रंग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
बन गई नक़्श जो सुर्ख़ी तिरे अफ़्साने की
वो शफ़क़ है कि धनक है कि हिना है क्या है
नक़्श लायलपुरी
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
सुर्ख़ी में नहीं दस्त-ए-हिना-बस्ता भी कुछ कम
पर शोख़ी-ए-ख़ून-ए-शोहदा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
तिरे हाथों की सुर्ख़ी ख़ुद सुबूत इस बात का दे है
कि जो कह दे है दीवाना वो कर के भी दिखा दे है
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
हमारे बाद ही ख़ून-ए-शहीदाँ रंग लाएगा
यही सुर्ख़ी बनेगी ज़ेब-ए-उनवाँ हम नहीं होंगे
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
सुर्ख़ी-ए-मय कम थी मैं ने छू लिए साक़ी के होंट
सर झुका है जो भी अब अरबाब-ए-मय-ख़ाना कहें