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ग़ज़ल
सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई
कोसों उस की ओर गए पर सज्दा हर हर गाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मैं वो पज़मुर्दा सब्ज़ा हूँ कि हो कर ख़ाक से सरज़द
यकायक आ गया उस आसमाँ की पाएमाली में
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
जुर्म तो कोई नहीं सरज़द हुआ मुझ से हुज़ूर
बावजूद उस के सज़ा तस्लीम कर लेता हूँ मैं
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
हुई थी इक ख़ता सरज़द सो उस को मुद्दतें गुज़रीं
मगर अब तक मिरे दिल से पशेमानी नहीं जाती
जगदीश सहाय सक्सेना
ग़ज़ल
इंसाँ वो क्या कि जिस से हो सरज़द ख़ता नहीं
इज़हार-ए-दर्द-ए-दिल पे ये ग़ुस्सा रवा नहीं
माहिर बिलग्रामी
ग़ज़ल
सरज़द हुई थीं नश्शे में हम से भी नेकियाँ
वो दफ़्तर-ए-हिसाब फ़रिश्ते से खो गया
मुबश्शिर अली ज़ैदी
ग़ज़ल
तुम से तो यूँ हुआ नहीं सरज़द कोई क़ुसूर
होगी कोई कमी ही हमारी निबाह में