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ग़ज़ल
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से
कि जिन को डूबना हो डूब जाते हैं सफ़ीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये सइ-ए-ज़ब्त-ए-ग़म आँखों में आँसू रोकने वाले
सफ़ीनों में कहीं तूफ़ान भी मस्तूर होता है
आमिर उस्मानी
ग़ज़ल
कभी तूफ़ाँ की ज़द से भी सफ़ीने बच निकलते हैं
कभी सालिम सफ़ीनों को किनारे मार देते हैं
नुज़हत अब्बासी
ग़ज़ल
मिरी आँखों में जब भी तेरे मंज़र बैठ जाते हैं
तो इन ख़ाली सफ़ीनों में समुंदर बैठ जाते हैं
मुकेश आलम
ग़ज़ल
जिन सफ़ीनों ने कभी तोड़ा था मौजों का ग़ुरूर
उस जगह डूबे जहाँ दरिया में तुग़्यानी न थी
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
कभी तूफ़ाँ की ज़द से भी सफ़ीने बच निकलते हैं
कभी सालिम सफ़ीनों को किनारे मार देते हैं
नुज़हत अब्बासी
ग़ज़ल
शाहनवाज़ अंसारी
ग़ज़ल
अब नाम ग़म-ए-दिल का तस्वीर ओ क़लम तक है
तूफ़ाँ ने सफ़ीनों में ढूँडी हैं पनह-गाहें