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ग़ज़ल
जाने क्यूँ है ज़ेहन ग़ालिब कि मैं सोया हुआ हूँ
आइना-ख़ाना-ए-अफ़्लाक में खोया हुआ हूँ
आसिम बख़्शी
ग़ज़ल
तेरी मिट्टी ने समोया नहीं तो क्या है 'रियाज़'
तू तो इस जिस्म के बाहर कहीं सो सकता है
रियाज़ लतीफ़
ग़ज़ल
हथेली में समोया उस ने उस को प्यास भी थी
मगर 'हसरत' मैं दर्ज़ों में से फिर भी बह गया हूँ
रशीद हसरत
ग़ज़ल
नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं