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ग़ज़ल
है सर शहीद-ए-इश्क़ का ज़ेब-ए-सिनान-ए-यार
सद शुक्र बारे नख़्ल-ए-वफ़ा बारवर तो है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
तुम्हारे हाथ से सीने में दिल से ता-बा-जिगर
सिनान ओ ख़ंजर ओ पैकाँ की है दुकान लगी
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
कल भी ज़बान-ओ-नुत्क़ को ख़ौफ़-ए-सिनान-ओ-सैफ था
नक़्द-ओ-नज़र को दहशत-ए-तीर-ओ-कमाँ है आज भी
दर्शन सिंह
ग़ज़ल
मैदान-ए-कार-ज़ार में 'अख़्तर' कभी भी मैं
ख़ौफ़-ए-सिनान-ए-ज़िल्ल-ए-इलाही न लाऊँगा
अख़्तर शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
जारी ब-राह-ए-चश्म सती ख़ून-ए-दिल 'सिराज'
जब सीं मिरे जिगर में लगी है सिनान-ए-हिज्र
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
चखी न जिस ने कभी लज़्ज़त-ए-सिनान-ए-निगाह
मज़ा दे फिर उसे क्या तेग़-ए-ख़ूँ-चकान-ए-निगाह