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ग़ज़ल
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
दश्त-ए-ग़ुर्बत में रुलाते हैं हमें याद आ कर
ऐ वतन तेरे गुल ओ सुम्बुल ओ रैहाँ क्या क्या
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
सौदा-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार में काफ़िर हुआ हूँ में
सुम्बुल के तार चाहिएँ ज़ुन्नार के लिए
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
रुख़ जो ज़ेर-ए-सुंबल-ए-पुर-पेच-ओ-ताब आ जाएगा
फिर के बुर्ज-ए-सुंबले में आफ़्ताब आ जाएगा
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
लिपटी है चोटी यार की फूलों के हार में
सुम्बुल ने गुल खिलाए हैं फ़स्ल-ए-बहार में
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
क़द ओ गेसू को तुम शमशाद ओ सुम्बुल कह के क्या लोगे
क़द ओ गेसू को मैं दार-ओ-रसन कह दूँ तो क्या होगा
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
रंग-ए-बनफ़शा मिट गया सुंबुल-ए-तर नहीं रहा
सेहन-ए-चमन में ज़ीनत-ए-नक़्श-ओ-निगार हो चुकी
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
गेसू ही कुछ नहीं है सुम्बुल की आफ़त उस का
हैं बर्क़ ख़िर्मन-ए-गुल रुख़्सार-ए-आतिशीं भी
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ए-सुम्बुल निकहत-ए-गुल मौज-ए-सब्ज़ा मौज-ए-आब
बाग़ में कोई जगह ख़ाली न देखी दाम से
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
हैं दीदनी बनफ़शा ओ सुम्बुल के पेच ओ ताब
नक़्शा खींचा हुआ है ख़त-ओ-ज़ुल्फ़-ए-यार का