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ग़ज़ल
वक़्त सिंघासन पर बैठा है अपने राग सुनाता है
संगत देने को पाते हैं साँसों के उक्तारे लोग
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
राहज़नों से घबरा कर सब साथी संगत छोड़ गए
और पुर-ख़ौफ़ डगर पर गर्म-ए-सफ़र हम आज अकेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
आप की संगत का ये अंदाज़ मन को भा गया
गर्दिश-ए-दौराँ में हम को मुस्कुराना आ गया
पुरुषोत्तम अब्बी आज़र
ग़ज़ल
लबों पे चाशनी और दिल में नफ़रतों का ज़हर
ये आब-ओ-नार की संगत बड़ी निराली है
ओबैदुर्रहमान नियाज़ी
ग़ज़ल
उस ने भी हल्क़े में अपने फ़र्ज़ानों को ढूँड लिया
हम ने भी कर ली है संगत सहरा में दीवानों से
शकील हैदर
ग़ज़ल
तू संगत है बहारों की दिलाँ के चाँद तारों की
तू रानी है मिरे दिल की न दिल को अब कोई भावे