aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "سوئے_ادب"
फ़रियाद भी है सू-ए-अदब अपने शहर मेंहम फिर रहे हैं मोहर-ब-लब अपने शहर में
सू-ए-अदब न ठहरे तो दें कोई मशवराहम मुतमइन नहीं हैं तिरी काएनात से
शिकवा-ए-ग़म जहाँ है सू-ए-अदबऐसे भी कुछ मक़ाम होते हैं
सू-ए-अदब कहूँ कि इसे बे-तकल्लुफ़ी'राग़िब' बजाए आप मुख़ातिब वो तू से था
अदब के नाम पे होगी जो इतनी पाबंदीतो कोई वाक़िआ' सू-ए-अदब तो होगा ही
समझे हैं सू-ए-अदब जन्नत-ए-सानी कहनावो कुछ अश्ख़ास जो हैं मर्तबा-दान-ए-देहली
कोई और तर्ज़-ए-हयात भी मुझे अब रहीन-ए-करम बताकि है बात मेरी गिरफ़्तनी मिरी चुप भी सू-ए-अदब में है
जिस को सज्दे किए फ़रिश्तों नेसोचिए अब वो आदमी क्या है
सोचिए अब इतने चारागर कहाँ से आएँगेमुस्कुरा कर अपने कुछ बीमार कम कर दीजिए
लीजिए सुनिए अब अफ़्साना-ए-फ़ुर्क़त मुझ सेआप ने याद दिलाया तो मुझे याद आया
ये हस्ती भी इक रुख़ उसी का है 'तालिब'ये क्यूँ आप सू-ए-अदम देखते हैं
कुछ कीजिए आ'माल सँवर जाएँ जहाँ मेंकुछ सोचिए अब वक़्त-ए-क़ज़ा दूर नहीं है
अब नहीं सोच ज़माने की भले जो सोचेअब तो दीवार से ग़म तेरा लगाता है मुझे
चुपके पी लेते हैं इंकार नहीं करते हैंशैख़ जी सुनिए अदब है यही मयख़ाने का
ये शहर शहर-ए-बला भी है कीना-साज़ के साथनिकल चलो किसी महबूब-ए-दिल-नवाज़ के साथ
शब की आग़ोश में फैलें न गुमाँ के साएअब निगाहों में कोई ख़ौफ़ ना पलने देंगे
ये सानिहा है कि सर से उठे घने साएअब अपनी राह में कोई शजर न आएगा
वो धूप है कि गए हार जिस से सब साएअब ऐसे में तो तिरी ज़ुल्फ़ कुछ कमाल करे
कितने ख़लीक़ साए अब धूप दे रहे हैंपहुँचा हूँ जब से 'साग़र' मैं नुदरत-ए-बयाँ तक
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