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ग़ज़ल
जिस चीज़ से तुझ को निस्बत है जिस चीज़ की तुझ को चाहत है
वो सोना है वो हीरा है वो माटी हो या कंकर हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जग सूना है तेरे बग़ैर आँखों का क्या हाल हुआ
जब भी दुनिया बस्ती थी अब भी दुनिया बस्ती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
बेकार गया बन में सोना मिरा सदियों का
इस शहर में तो अब तक सिक्का भी नहीं बदला
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
बिखराते हो सोना हर्फ़ों का तुम चाँदी जैसे काग़ज़ पर
फिर इन में अपने ज़ख़्मों का मत ज़हर मिलाओ इंशा-जी
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं
और इस के बअ'द गहरी नींद सोना चाहता हूँ मैं