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ग़ज़ल
ये हम को कौन सी दुनिया की धुन आवारा रखती है
कि ख़ुद साबित-क़दम रह कर हमें सय्यारा रखती है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
शब नज़र की मैं ने फ़ुर्क़त में जो सू-ए-आसमाँ
अज़दहा थी कहकशाँ अक़रब हर इक सय्यारा था
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
मुंतज़िर था वो तो जुस्त-ओ-जू में ये आवारा था
शेफ़्ता तेरा ही था जो साबित-ओ-सय्यारा था
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
हफ़्त-अफ़्लाक ने दस्तक दे कर पूछा था किस हाल में हो
इक दरवेश ने बढ़ के सदा दी ये सय्यारा नींद में है