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ग़ज़ल
तू ने रिंदों का हक़ मारा मय-ख़ाने में रात गए
शैख़ खरे सय्यद हैं हम तो हम ने सुनाया शाद हुए
जौन एलिया
ग़ज़ल
'सय्यद' जी क्या बीती तुम पर खोए खोए रहते हो
कुछ तो दिल की बात बताओ कुछ अपने अहवाल कहो
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
याद मुझ को करने वाले मेरे प्यारे मर गए
जिन को मुझ से थी मोहब्बत लोग सारे मर गए
सैयद जॉन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
मुझ में कोई मुझ जैसा हो ऐसा भी हो सकता है
या फिर कोई और छुपा हो ऐसा भी हो सकता है
सय्यद सरोश आसिफ़
ग़ज़ल
लग़्ज़िशों से मावरा तू भी नहीं मैं भी नहीं
दोनों इंसाँ हैं ख़ुदा तू भी नहीं मैं भी नहीं
सय्यद अारिफ़
ग़ज़ल
हम ज़माने से फ़क़त हुस्न-ए-गुमाँ रखते हैं
हम ज़माने से तवक़्क़ो ही कहाँ रखते हैं