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ग़ज़ल
तुम से बिछड़ के याद तुम्हारी शाज़-ओ-नादिर ही आई
डूबी आँखों से ये कहना इतना भी आसान नहीं
असलम नूर असलम
ग़ज़ल
हुस्न-ए-ख़ुद-बीन-ओ-ख़ुद-आरा है मिज़ाजन फिर भी
शाज़-ओ-नादिर ही वो खुलता है अगर खुलता है
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
ग़ज़ल
मेरे किरदार-ए-वफ़ा की आईना-दारी ब-ख़ैर
क्यूँ ज़बान-ए-दोस्त पर अल-शाज़-ओ-कल-मादूम है
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
हैं मह ओ ख़ुर्शीद जो शाम ओ सहर तुझ पर से वार
सीम ओ ज़र के फेंकते हैं बीच में मज्लिस के फूल
शाह नसीर
ग़ज़ल
हूँ मैं जान-ओ-दिल से 'आसिम' शाह-ए-ख़ादिम पर फ़िदा
इश्क़ के किश्वर में जिस की शान-ओ-शौकत और है
शाह आसिम
ग़ज़ल
शाह नसीर
ग़ज़ल
दिल की जुदाई का कहूँ किस से मैं माजरा-ए-ग़म
सैल-ए-सरिश्क-ए-चश्म-ए-तर शाम-ओ-सहर बहा किया