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ग़ज़ल
नई शमएँ जलाओ आशिक़ी की अंजुमन वालो
कि सूना है शबिस्तान-ए-दिल-ए-परवाना बरसों से
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
समझ में कुछ नहीं आता कि ये क्या राज़ है यारो
मिज़ाज-ए-शम्अ से क्यों कर दिल-ए-परवाना मिलता है
ज़ाहिद अल-एहसानी लोहारवी
ग़ज़ल
देखें क्या आए नज़र ख़ाकिस्तर-ए-परवाना में
देखते हैं शम्अ में सोज़-ए-दिल-ए-परवाना हम
आसिफ़ बनारसी
ग़ज़ल
मौत भी सामने आ जाए तो पर्वा न करें
जाँ-ब-कफ़ दिल को मिसाल-ए-दिल-ए-परवाना करें
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
शिकवा हर दम ही तअ'स्सुब का न 'परवाना' करो
तुम हो क़ाबिल तो मिले कुछ भी न मंज़िल के सिवा