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ग़ज़ल
ख़ुश्क खजूर के पत्तों से जब नींद का बिस्तर सजता था
ख़्वाब-नगर की शहज़ादी गलियों में आन निकलती थी
हम्माद नियाज़ी
ग़ज़ल
वो तो शुक्र करो तुम मीठा लहजा है शहज़ादी का
जिस को प्यार समझते हो वो ग़ुस्सा है शहज़ादी का
अहमद अज़ीम
ग़ज़ल
मुरझाए हुए चेहरे पे हँसी जब आई मुझ को याद आया
भूली-भटकी शहज़ादी का जंगल में सफ़र तन्हा तन्हा
बशीर बद्र
ग़ज़ल
शहज़ादी दुख़्त-ए-रज़ के हज़ारों हैं ख़्वास्त-गार
चुप मुर्शिद-ए-मुग़ाँ है किसे दूँ किसे न दूँ