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ग़ज़ल
हम कितने भी ग़लत थे लेकिन लफ़्ज़ हमेशा चुने सहीह
ख़ुद को ना-माक़ूल भी हम ने अगर कहा माक़ूल कहा
विनीत आश्ना
ग़ज़ल
माधवी शंकर
ग़ज़ल
बताओ कैसे मिलेगी हमें सहीह ता'बीर
जब अपना ख़्वाब ही चश्म-ए-दिगर में रक्खा जाए
अमानुल्लाह ख़ालिद
ग़ज़ल
उन के अब क़ौल-ओ-क़सम होने लगे कुछ-कुछ सहीह
उन के वा'दे अब तो कुछ होने लगे कम-कम ग़लत
मोहम्मद लुतफ़ुद्दीन ख़ान लुत्फ़
ग़ज़ल
ले कर सरीह दिल को वो गुल-ए-'एज़ार यारो
ज़ाहिर करे है क्या क्या इंकार हँसते हँसते