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ग़ज़ल
मिरे हम-सफ़ीर इसे भी असर-ए-बहार समझे
उन्हें क्या ख़बर कि क्या है ये नवा-ए-आशिक़ाना
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मिरे हम-सफ़ीर बुलबुल मिरा तेरा साथ ही क्या
मैं ज़मीर-ए-दश्त-ओ-दरिया तू असीर-ए-आशियाना
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
हवा है शौक़-ए-सुख़न दिल में मौज-ज़न 'वहशत'
कि हम-सफ़ीर मिरा रो'ब सा सुख़न-दाँ है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
सब हम-सफ़ीर छोड़ के तन्हा चले गए
कुंज-ए-क़फ़स में मुझ को गिरफ़्तार देख कर
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
पुकारा दूर से दे कर सफ़ीर उस ने तो क्या मेरा
धड़क कर यक-ब-यक सीने में दिल लोटा कबूतर सा
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
वो न अगला बाग़बाँ है अब न अगले हम-सफ़ीर
याद करता हूँ क़फ़स को मैं गुलिस्ताँ देख कर