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ग़ज़ल
इशक़-ए-पेचाँ की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े
क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है
जौन एलिया
ग़ज़ल
वो अजब दुनिया कि सब ख़ंजर-ब-कफ़ फिरते हैं और
काँच के प्यालों में संदल भीगता है साथ साथ
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
सुब्ह नहाने जूड़ा खोले नाग बदन से आ लिपटें
उस की रंगत उस की ख़ुश्बू कितनी मिलती संदल में
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
माथे पर टीका संदल का अब दिल के कारन रहता है
मंदिर में मस्जिद बनती है मस्जिद में बरहमन रहता है