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ग़ज़ल
पूछ न उन निगाहों की तुर्फ़ा करिश्मा-साज़ियाँ
फ़ित्ने सुला के रह गईं फ़ित्ने जगा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जिस क़दर जिगर ख़ूँ हो कूचा दादन-ए-गुल है
ज़ख्म-ए-तेग़-ए-क़ातिल को तुर्फ़ा दिल-कुशा पाया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वाह-रे शौक़-ए-शहादत कू-ए-क़ातिल की तरफ़
गुनगुनाता रक़्स करता झूमता जाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
है तुर्फ़ा अम्न-गाह निहाँ-ख़ाना-ए-अदम
आँखों के रू-ब-रू से तू लोगों के टल के चल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
चाँद सा चेहरा नूर की चितवन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
तुर्फ़ा निकाला आप ने जोबन माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
जल्वा-ए-साग़र-ओ-मीना है जो हमरंग-ए-बहार
रौनक़ें तुर्फ़ा तरक़्क़ी पे हैं मय-ख़ानों की
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
कुछ भी हासिल नहीं यक-तरफ़ा मोहब्बत का जनाब
उन की जानिब से भी हाँ हो तो ग़ज़ल होती है
नाज़ ख़यालवी
ग़ज़ल
जुनूँ वालों की ये शाइस्तगी तुर्फ़ा-तमाशा है
रफ़ू भी चाहते हैं चाक-दामानी भी करते हैं