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ग़ज़ल
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
हिज्र-ए-जानाँ के अलम में हम फ़रिश्ते बन गए
ध्यान मुद्दत से छुटा आब-ओ-तआ'म-ओ-ख़्वाब का
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
बदन के लुक़्मा-ए-तर को हराम कर लिया है
कि ख़्वान-ए-रूह पे जब से तआम कर लिया है
अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल
توشہ لے آئینہ سا یہ حیرت کی راہ میں
بر میں رکھے ہیں آپ نے آب و طعام چشم
शाह ज़ियाउद्दीन अल-हुसैनी प्रवाना बुरहानपुरी
ग़ज़ल
बदन के लुक़्मा-ए-तर को हराम कर लिया है
कि ख़्वान-ए-रूह पे जब से त'आम कर लिया है