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ग़ज़ल
हटाएँगे वो चेहरे से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
कि होता है तुलू’-ए-आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
अमर अबदाबादी
ग़ज़ल
रुख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
कि जैसे हो तुलू-ए-आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
तुलू-ए-आफ़्ताब-ए-आगही क्या ख़ाक देखेंगे
हिक़ारत से मिरा चाक-ए-गरेबाँ देखने वाले
ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी
ग़ज़ल
मिरा सीना है मशरिक़ आफ़्ताब-ए-दाग़-ए-हिज्राँ का
तुलू-ए-सुब्ह-ए-महशर चाक है मेरे गरेबाँ का
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
तुलू-ए-सुब्ह है नज़रें उठा के देख ज़रा
शिकस्त-ए-ज़ुल्मत-ए-शब मुस्कुरा के देख ज़रा