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ग़ज़ल
इश्वे से ग़म्ज़े से शोख़ी से अदा से नाज़ से
मिटने वाला हूँ मिटा दीजे किसी तदबीर से
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
वहाँ वो नाज़-ओ-इश्वे से क़दम गिन गिन के रखते हैं
यहाँ इस मुंतज़िर का वक़्त पहुँचा दम-शुमारी का
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
कहूँ मैं जिस से उसे होवे सुनते ही वहशत
फिर अपना क़िस्सा-ए-वहशत कहूँ तो किस से कहूँ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं
उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या