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ग़ज़ल
आज़ुर्दा इस चमन में हूँ मानिंद-ए-बर्ग-ए-ख़ुश्क
छेड़े जो टुक नसीम मुझे सौ ग़ुलू करूँ
क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल
विर्द-ए-ज़बाँ है रोज़-ओ-शब इन की सना-ए-हुस्न
शायाँ है जिस क़दर कि ये शाएर ग़ुलू करें
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
ग़लत है जज़्ब-ए-दिल का शिकवा देखो जुर्म किस का है
न खींचो गर तुम अपने को कशाकश दरमियाँ क्यूँ हो