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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं
ग़ुंचे अपनी आवाज़ों में बिजली को पुकारा करते हैं
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
हर हाल में मेरा दिल-ए-बे-क़ैद है ख़ुर्रम
क्या छीनेगा ग़ुंचे से कोई ज़ौक़-ए-शकर-ख़ंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मेरा क्या इक मौज-ए-हवा हूँ पर यूँ है ऐ ग़ुंचा-दहन
तू ने दिल का बाग़ जो छोड़ा ग़ुंचे बे-उस्ताद हुए
जौन एलिया
ग़ज़ल
अब इन दिनों मेरी ग़ज़ल ख़ुशबू की इक तस्वीर है
हर लफ़्ज़ ग़ुंचे की तरह खिल कर तिरा चेहरा हुआ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ग़ुंचे मुरझाते हैं और शाख़ से गिर जाते हैं
हर कली फूल ही बन जाए ज़रूरी तो नहीं
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
गर खुले दिल की गिरह तुझ से तो हम जानें तुझे
ऐ सबा ग़ुंचे का उक़्दा खोल देना सहल है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
झूमती है शाख़-ए-गुल खिलते हैं ग़ुंचे दम-ब-दम
बा-असर गुलशन में तहरीक-ए-सबा हो या न हो