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ग़ज़ल
मुअज़्ज़िज़ शख़्सियत है शहर का अब नामवर ग़ुंडा
कि बन बैठा है वो पार्टी का लीडर लोग कहते हैं
फैज़ुल अमीन फ़ैज़
ग़ज़ल
छोटी क़ौमों पर अगर ''वीटो'' का लठ चलता रहा
सिर्फ़ ''यू.एन.ओ'' में ग़ुंडा-गर्दीयाँ रह जाएँगी
सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल
कोई ग़ुंचा हो कि गुल हो कोई शाख़ हो शजर हो
वो हवा-ए-गुलसिताँ है कि सभी बिखर रहे हैं