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ग़ज़ल
दम आया नाक में फ़रियादियों के शोर ओ ग़ौग़ा से
क़यामत में अबस क्यूँ खींच लाया इंतिशार अपना
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
क़ल्ब पर गिरती तड़प कर फिर वही बर्क़-ए-जमाल
हर बुन-ए-मू में वही आशोब ओ ग़ौग़ा देखते
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
ग़ौग़ा है शर्क़ ओ ग़र्ब ओ जुनूब ओ शुमाल में
फ़ित्ने जगा गई तिरी रफ़्तार हर तरफ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
बहुत से ज़ाग़ ओ चुग़दों का था ग़ुल ग़ौग़ों का ग़ौग़ा था
फ़लक की जान को रो कर मैं अपना सर ले फिर आया