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ग़ज़ल
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
देखिए मौत आए 'फ़ानी' या कोई फ़ित्ना उठे
मेरे क़ाबू में दिल-ए-बे-सब्र-ओ-ताब आने को है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
उस फ़ित्ना-ख़ू के दर से अब उठते नहीं 'असद'
उस में हमारे सर पे क़यामत ही क्यूँ न हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ग़ज़ब की फ़ित्ना-साज़ी आए है उस आफ़त-ए-जाँ को
शरारत ख़ुद करे है और हमें तोहमत लगा दे है
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
मैं कीने से भी ख़ुश हूँ कि सब ये तो कहते हैं
उस फ़ित्ना-गर को लाग है इस मुब्तला के साथ