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ग़ज़ल
ये बज़्म-ए-मोहब्बत है इस बज़्म-ए-मोहब्बत में
दीवाने भी शैदाई फ़रज़ाने भी शैदाई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
जुनूँ का ज़ोम भी रखते हैं अपने ज़ेहन में हम
पड़े जो वक़्त तो फ़रज़ाने होना चाहते हैं
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
न मैं दीवाना फ़रज़ाना न मैं परवाना ऐ 'अर्पित'
तअज्जुब है मुझे क्यूँकर मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
किताबों में धरा है क्या बहुत लिख लिख के धो डालीं
हमारे दिल पे नक़्श-ए-कल-हजर है तेरा फ़रमाना